देश की न्याय-व्यवस्था हिन्दी और भारतीय भाषाओं में कराने के देशव्यापी-अभियान के नेतृत्व-पुरुष हैं चन्द्रशेखर उपाध्याय

CS Upadhyay

लखनऊ। चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (CS Upadhyay) अपने छठवें देशव्यापी-प्रवास के दौरान आज लखनऊ में थे, संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन किये जाने की उनकी तीन दशक पुरानी मांग पर आज मीडिया ने उनसे, उनके अभियान का लेखा-जोखा लिया। इस बातचीत को उन्होंने प्रख्यात सोशलिस्ट सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की पंक्तियों से शुरू किया, ‘लीक पर वे चलें,जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं……., हमें तो जो हमारी यात्रा से बने,ऐसे अनिर्मित पथ प्यारे हैं.. प्रख्यात न्यायविद् एवम् भारतीय जनता पार्टी के पूर्ववर्ती-दल भारतीय जनसंघ के स्थापना- श्लाका एवम् प्रेरणा-पुरूष पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 25 दिसम्बर 2023 को दिये उनके उस वक्तव्य की उनको याद दिलायी, जिसमें नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि देश की न्याय- व्यवस्था भारतीय भाषाओं में संचालित होनी चाहिए।

श्री उपाध्याय (CS Upadhyay) ने कहा कि ‘हिन्दी से न्याय’ (Hindi se Nyay) के विजय-पथ पर प्रधानसेवक की यह पांचवीं पदचाप है,समूचे नौ वर्ष और नौ माह के अपने प्रधानमंत्रित्व-काल में नरैण-दादू (नरेन्द्रभाई दामोदरदास मोदी) कुल-जमा पांच बार वक्तव्य दे चुके हैं (30 अप्रैल 2022/ 22 जनवरी 2023/ 15 अगस्त 2023/ 23 सितम्बर 2023/ 25 दिसम्बर 2023) जिसमें उन्होंने कहा कि देश की न्याय-व्यवस्था अंग्रेजों के काले-आखर के बजाय भारतीय-भाषाओं में संचालित होनी चाहिए, इस बार नरैण-दादू ने तीन महत्वपूर्ण बातें कहीं, पहली यह कि-‘सरकार न्यायालयों में स्थानीय-भाषाओं में कामकाज को प्रोत्साहित कर रही है।’

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‘हिन्दी से न्याय’ (Hindi se Nyay) इस देशव्यापी-अभियान के सभी- साथी, प्रधानमंत्री की इस सद्भावना एवम् सद्इच्छा का सम्मान करते हैं लेकिन शीर्ष- न्यायालयों में हिन्दी एवम् अन्य भारतीय-भाषाओं (संविधान की अष्टम् अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाएं, जिनकी लिपि उपलब्ध है) में कामकाज निपटाने का ‘सरकारी-प्रोत्साहन’ जमीन पर कहीं दिखाई नहीं दे रहा? खुद उनके गृह-राज्य गुजरात में 2022 में एक पत्रकार को गुजराती भाषा में मुकदमे की पैरवी करने पर माननीय न्यायमूर्ति ने टोक दिया था, रोक दिया था,जबकि गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए 2012 में नरैण-दादू ने तत्समय केन्द्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें मांग की गयी थी कि गुजरात की हाईकोर्ट में गुजराती में कामकाज होना चाहिए।

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यह अतीव आनन्द की बात है कि ‘हिन्दी से न्याय’ (Hindi se Nyay) इस देशव्यापी -अभियान के एकल प्रयत्नों से हिन्दी-पट्टी के दो-चार माननीय उच्च-न्यायालयों में हिन्दी में कुछ बातचीत अवश्य हो रही है, जहां तक वादी को निर्णय की प्रति उसकी भाषा में उपलब्ध कराये जाने की कार्यवाही प्रारम्भ किए जाने की बात है, इसमें वादी के समय और पैसे की भारी बर्बादी हो रही है,यह ‘हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी-अभियान के लिए चिन्ता का विषय है।

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दूसरा भावुक होते हुए नरैण-दादू ने कहा कि,’दु:ख तो इस बात का है कि इस काम के लिए देश को 75 साल तक इन्तजार करना पड़ा? ‘हिन्दी से न्याय’ (Hindi se Nyay) इस देशव्यापी-अभियान के प्रत्येक साथी को समूचे छियासठ साल (1947-2014) के इन्तजार पर न कोई क्षोम है और न ही कोई दु:ख? क्योंकि इस कालावधि के सत्ताधीशों के एजेंडे में हिन्दी और अन्य भारतीय-भाषाएं थीं ही नहीं, उनके लिए रोजमर्रा और ज़िन्दगी की भाषा ‘अंग्रेजी’ थी, हिन्दी और अन्य भारतीय-भाषाएं उनके लिए ‘वोट’ व ‘नोट’ का जुगाड़-भर थी।

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श्री अटल बिहारी वाजपेई जी का कालखण्ड इसका अपवाद हो सकता है,लेकिन 272 का बहुमत का आंकड़ा उनके पथ का सबसे बड़ा अवरोध था,, हमें दु:ख और क्षोम नौ वर्ष नौ माह का है जब हिन्दी/ हिन्दू / हिन्दुस्थान के आदर्शों/सिद्धांतों और मानकों पर बनी एक सत्ता में ‘हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी-अभियान को नौ मिनट का समय भी मिलने और सुनने के लिए नहीं मिला है तो उपाय क्या हो? जब देश की संस्थाओं ने समूचे अभियान का अनादर किया, अपमान किया, उसकी उपेक्षा की तो हम देश के पास गए, समूची यात्रा का सुखद-परिणाम यह हुआ कि देश ही नहीं परन्तु दुनिया के तमाम देशों में भारतवंशियों की एक संस्था का निर्माण हो गया, जनता की इस संस्था ने ‘हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी-अभियान के प्रत्येक साथी को चलते रहने की ताकत दी और लड़ते रहने की शक्ति दी।

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तीसरा नरैण-दादू ने कहा कि, महामना के लिए अटलजी ने कहा था,’जब भी कोई व्यक्ति सरकारी-मदद के बिना कुछ करने के लिए निकलेगा , महामना का व्यक्तित्व, उनका कृतित्व दीपशिखा की तरह उसका मार्ग आलोकित करेगा’, ‘हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी-अभियान का प्रत्येक साथी सरकारी और गैर-सरकारी मदद के बिना अपनी-अपनी नीड़ से निकला है, लोगों ने हम पर कंकड़-पत्थर फेंके, हमने उन्हें एकत्र किया और एक पथ बना दिया ,आज अनगिनत लोग उस पथ पर हमारे साथ चल रहे हैं।

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अभियान की समूची-यात्रा में महामना समेत अनेक विशिष्ट हुतात्माओं का ‘दीपक’ हमें सदैव आलोकित करता रहा है,दीपक छोटा है, समूचा अंधकार मिटा तो नहीं सकता,लेकिन छोटे- छोटे असंख्यों दीपकों के लिए प्रेरणा-पुंज बना है यह सम्पूर्ण अभियान के प्रत्येक साथी की अल्हड़-मस्ती,जीवंतता- जीवटता और कभी न थकने व कभी न हारने की जिजीविषा का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि हम देश को पुनः विश्वास दिलाते हैं कि छोटे दीपक के प्रकाश में ही हम पूरी ऊर्जा और शक्ति के साथ विजय-पथ की ओर बढ़ेंगे और जीतेंगे।’हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी-अभियान के प्रत्येक साथी का निश्चित मत है कि संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन ही अब एकमात्र विकल्प है।

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अनुच्छेद 348 भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 की तरह ही एक अस्थायी-व्यवस्था है, प्रधानमंत्री का संकल्प है कि भारत के संविधान में अब कुछ अस्थायी नहीं रहेगा,अनुच्छेद 349 में संविधान के लागू होने के पन्द्रह वर्ष के भीतर अनुच्छेद 348 में संशोधन करने की बात कही गयी है, मामला संसद के पटल पर है।

हाईकोर्ट की सीढ़ियों पर हिन्दी की पहली ‘पदचाप’ का दिन है 12 अक्टूबर

25 दिसम्बर 2023 को महामना मदनमोहन मालवीय जी की जन्मतिथि पर उनके सम्पूर्ण वांग्मय के लोकार्पण-समारोह में दिया गया प्रधानमंत्री का वक्तव्य कार्यरूप में परिणित होगा, ऐसा विश्वास ‘हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी-अभियान का प्रत्येक साथी और देश कर सकता है।