सफाई कार्य ने ही महेश को समाज में कर दिया प्रतिष्ठित

Mahesh Shukla

गोरखपुर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) के शहर गोरखपुर के शाही मार्केट गोलघर में कंप्यूटर की दुकान चलाने वाले महेश शुक्ला (Mahesh Shukla) कब झाड़ू बाबा बन गये पता ही नहीं चला। अक्सर गोरखनाथ मंदिर में दर्शन करने जाने वाले महेश शुक्ला को परिसर में लगाए जाने वाले झाड़ू ने ऐसा प्रेरित किया कि वे वर्ष 2008 से साल के 365 दिन सुबह कहीं न कहीं झाड़ू लगाने लगे और लोग उन्हें ”झाड़ू बाबा” बुलाने लगे। झिझक से शुरू किये गये सफाई कार्य ने ही महेश शुक्ला को समाज में ”प्रतिष्ठित” कर दिया।

महेश शुक्ला (Mahesh Shukla)  बताते हैं कि वे अक्सर गोरखनाथ मंदिर (Gorakhnath Temple) जाते थे। सुबह के वक्त मंदिर परिसर में झाड़ू लगाया जाता था। वहां की साफ सफाई अक्सर उन्हें आकर्षित करती थी और उनके मन में भी सफाई को लेकर तरह तरह की कल्पनाएं चलती थी। वे मन ही मन उन योजनाओं पर काम करते रहते जिनको लेकर वे अक्सर सोचा करते थे। इन्हीं सोच में से मोहल्ले की सफाई भी थी। गोरक्षनाथ मंदिर की चकाचक सफाई की तरह अपने मुहल्ले शास्त्री नगर स्थित खुद रहने वाली गली को भी साफ रखने की मंशा हुई। एक दिन महेश शुक्ला ने अपने मोहल्ले में पड़ी गन्दगी की सफाई शुरु कर दी।

कुछ ऐसा था गली का नजारा

महेश शुक्ला (Mahesh Shukla) कहते हैं कि जिस गली में मेरा घर है, उसमें लगभग 30-40 परिवार रहते हैं। मेरे घर के बाजू में एक बिजली का पोल था। मुहल्ले के लोग पूरी गली का कूड़ा वहीं डाल जाते। भोजन की तलाश में आये जानवर उसे और बिखेर देते। तब बहुत बुरा लगता था। मना करने पर लोग लड़ते थे। चूंकि, कूड़ा निस्तारण कार्य अमूमन महिलाएं ही करती हैं। इसलिए उनसे ही अधिक बहस होने की गुंजाइश थी। लेकिन ऐसा करना संस्कार के विरुद्ध था। चुपचाप करने मे ही भलाई भी थी। हालांकि पुरुषों से कभी कभार बहसबाजी तो होता ही था।

खल गई पत्नी की बात

श्री शुक्ला बताते हैं कि वे एक बार जयपुर जा रहे थे। बगल की सीट पर एक किताब पड़ी थी। उसमें गांधीजी एवं स्वच्छता के बारे में कुछ जिक्र था। उसे दिखाते हुए पत्नी ने कहा सफाई करनी है तो गांधीजी से सीख लो। बात जँच गयी। जयपुर से लौटने पर उसी झिझक के नाते देर रात में ही पोल के पास पड़े कूड़े को झाड़ू से बटोर कर गोला कर देता। भोर में सुबह 04 बजे उठकर उसे साफ करता। मै नहीं चाहता कि कोई मेरे इस काम को देखे। बावजूद इसके लोगों को धीरे धीरे इसका पता चल गया।

चर्चा होने लगी, ”हमारा कूड़ा शुक्ला जी उठाते हैं”

मोहल्ले में इस बात की चर्चा होने लगी कि हमारा कूड़ा शुक्लाजी उठाते हैं। फिर, 50 प्रतिशत लोगों ने पोल के पास कूड़ा फेंकना बंद कर दिया। इस घटना ने मुझे और प्रेरित किया। अब एक बड़ी झाड़ू खरीदी। पूरी गली में झाड़ू लगाने लगा। बावजूद इसके पोल के पास अब भी 3-4 महिलाएं कूड़ा फेंकती रहीं।

कूड़ा फेंकने वाले के सामने ही शुरू की सफाई

महेश शुक्ला (Mahesh Shukla) ने इसका भी काट खोज लिया। अब कूड़ा फेंकने वाली महिलाओं के समाने ही सफाई शुरू कर दी। फिर, उनके घर से ही विरोध होने लगा और कूड़ा फेंकना बंद हो गया।

पार्कों और मुख्य सड़क का किया रुख

लगभग 6 से 7 महीने की मेहनत से जब मोहल्ला चकाचक हो गये तब महेश शुक्ला (Mahesh Shukla) मुख्य सड़क और पार्कों का रुख किया। इस बीच केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने स्वच्छता अभियान शुरू किया। प्रतीकात्मक रूप से कई जगह झाड़ू लगाते एवं सफाई करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी दिखे। अन्य नेताओं ने भी शुरू कुया। अखबारों में मंदिर परिसर में ऐसा करते हुए योगी आदित्यनाथ की भी फोटो छपी। इसने मेरे हौंसले को और बढ़ा दिया। झिझक बिल्कुल दूर हो गई।

फिर मिलने लगा मंच और बढ़ने लगी प्रतिष्ठा

इस सब कार्यों के बीच मुझे लोगों ने मंच देना शुरू किया। वे कहते हैं कि मुझे आश्चर्य हुआ कि जिस काम को झिझक के साथ शुरू किया था, अब वह कार्य मेरी प्रतिष्ठा की वजह बन रहा था। फिर मैंने कार में आ सके इस हिसाब से कुछ झाडू बनवाया। ड्रेस, गलब्स, कैप और लोगों से साथ देने की अपील के लिए एक माइक सिस्टम भी खरीदा। लगातार 6 महीने तक तय समय पर वहां झाडू लगाने पहुँच जाता था। लोगों ने न केवल सराहा बल्कि साथ भी दिया। अब वहां रविवार एवं गुरुवार को जाता हूं। बाकी दिन भी चिन्हित जगहों पर झाड़ू लगती रहती है। कार में झाड़ू एवं बाकी किट पड़ी रहती है। जहां भी कार से जाता हूं। सुबह की दिनचर्या झाड़ू से ही शुरू होती है। सफाई के लिहाज से श्रेष्ठतम शहरों में शुमार इंदौर भी वहां की व्यवस्था को देखने जा चुका हूँ। गोरखपुर को उसी श्रेणी में खड़ा करने की मंशा है।