सिर चढ़ कर बोल रही टिकट बंटवारे की खीज

सिर चढ़ कर बोल रही टिकट बंटवारे की खीज

सियाराम पांडेय ‘शांत’

बिहार विधान सभा के चुनाव (Bihar Assembly Election) सिर पर हैं। निर्वाचन आयुक्तों ने बिहार का औपचारिक दौरा कर चुनाव पूर्व की तैयारियों को परख भी लिया है। अब केवल चुनाव अधिसूचना का इंतजार है जो शीघ्र ही कभी भी जारी हो सकती है। वैसे भी बिहार विधान सभा का कार्यकाल 22 नवंबर को पूरा हो रहा है लेकिन चुनाव अधिसूचना की गाड़ी अभी पटरी पर ही नहीं आई है। उसके स्टार्ट होने दौड़ने की कौन कहे लेकिन ताल ठोकने के मामले में कोई किसी से कम नहीं। यह और बात है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 22 नवंबर से पहले ही निर्वाचन प्रक्रियापूर्ण करलेने की बात कही है। जद यू ने जहां एक चरण में चुनाव कराने की मांग की है, वहीं राष्ट्रीय जनता दल दो चरणों में बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) कराए जाने का आकांक्षी है। विकथ्य है कि इसके पूर्व के तीन विधानसभाचुनाव वर्ष 2010 में छह, 2015 में पांच और 2020 में तीन चरणों में संपन्न हुए थे।

चुनाव (Election) की तैयारियों में सभी दल अपने स्तर पर जुट गए हैं। बाहरी और भीतरी दिग्गजों ने राज्य में पहले ही चुनावी मोर्चा संभाल लिया है। एक दूसरे को पटखनी देने का दौर भी अभी से आरंभ हो गया है। जनता और राजनीतिक पंडितों के बीच भी पार्टियों की हार- जीत के कयास लगाए जाने लगे हैं। सर्वेक्षण पर सर्वेक्षण हुए जा रहे हैं। हालिया सर्वेक्षण में ज्यादातर ने जहां एक बार फिर एनडीए की सरकार बनती दिखा दी है, वहीं एक सर्वे ऐसा भी है,जिसने राहुल और यशस्वी के नेतृत्व वाले गठबंधन इंडिया के जीतने की संभावना जताई है। इसे कभी बिहार की राजनीति में एकछत्र बादशाहत रखने वाली कांग्रेस के आंसू पोंछने की कवायद के तौर पर देखा जा सकता है।

राहुल गांधी को भी लगता है कि मतदाता अधिकार रैली के जरिए वे बिहार में कांग्रेस के गुजरे स्वर्णिम अतीत को वापस ला सकते हैं। शायद यही वजह है कि वे न केवल यशस्वी यादव से अपनी दोस्ती का प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि सघन मतदाता पुनरीक्षण अभियान के लिए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को वोट चोर ठहरा रहे हैं। यशस्वी समेत अन्य दलों के नेता भी उनके सुर में सुर मिला रहे हैं तो इसकी वजह यह है कि आज के दौर में कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है जो अपने बलबूते भाजपा को धूल चटाने सक्षम हो। प्रशांत किशोर से कुछ उम्मीदें बन सकती है लेकिन सर्वे में उनकी जन सुराज पार्टी को महज 4-5 सीटों पर जीतता दिखाया गया है और यह बात तो प्रशांत किशोर पहले ही एक साक्षात्कार में कह चुके हैं कि बिहार विधान सभा चुनाव में या तो वे अर्श पर रहेंगे या फर्श पर मगर लड़ेंगे सभी सीटों पर।

उनकी पार्टी हारे या जीते,यह मायने नहीं रखता लेकिन वह वोटकटवा जरूर साबित होगी।। एनडीए और इंडिया गठबंधन का समीकरण जरूर बिगाड़ सकती है। बिहार में यह कहावत जग जाहिर है।‘ खेलब न खेलय देब खेलवय बिगारब। ’लालू यादव के परिवार और राजद से बाहर हो चुके तेजप्रताप यादव ने भी जनशक्ति जनता दल का गठन कर लिया है। वे भी चुनाव मैदान में उतरने को बेताब हैं। लालू यादव के घर यह कलह इंडिया गठबंधन पर भारी नहीं पड़ेगी,ऐसा कैसे संभव है और अब तो वे असली रावण का भाष्य भी कर रहे हैं। मतलब साफ है कि राजनीतिक एकता के कुएं में ही भांग पड़ी हुई है।

यह सत्य भी किसी से छिपा नहीं है कि चाहे सत्तारूढ़ एनडीए हो या फिर इंडिया, सीटों के विभाजन की नूराकुश्ती दोनों ही ओर बराबर पर हो रही है लेकिन यह अंदर की बात है। बाहरसे सब कुछ ठीक है,ऐसा दिखाने और जताने की कोशिश हो रही है लेकिन सहयोगी दल जिसतरह अधिक से अधिक सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने को बेताब हैं। विरोध का छाता ताने हुए हैं। उसे हल्के में नहीं लिया जासकता । सच तो यह है कि सीटों के बंटवारे की यही खींचतान बिहार का सियासी भविष्य तय करने वाली है।

रही बात एनडीए की तो बिहार विधान सभा में भाजपा आज भी सबसे बड़ी पार्टी है। उसके 80 विधायक हैं। दूसरे स्थान पर जनता दल (यूनाईटेड) है। उसके 45 विधायक हैं। तीसरे स्थान पर चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) है। यह बात अलग है कि विधानसभा में उसका कोई विधायक नहीं है, लेकिन पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में उसका स्ट्राइक रेट सबसे अच्छा रहा है। उसे चुनाव लड़ने के लिए पांच सीटें मिली थीं और उसने सभी सीटों पर जीत कापरचम लहराया था। चिराग पासवान दलित नेता रामविलास पासवान के बेटे हैं और फिलहाल केंद्रीय सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। चौथे स्थान पर जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा (हम) के चार विधायक हैं। चिराग की तरह मांझी भी केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। गठबंधन में आखिरी पायदान पर उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी है। कुशवाहा पिछले साल लोकसभा चुनाव हार गए थे। बाद में भाजपा ने अपने कोटे से उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना रखा है।

एनडीए की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते जाहिर तौर अधिक सीटों पर भाजपा चुनाव लड़ना चाहेगी और उसके इस दावे में दम भी है। लेकिन नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री होने और गठबंधन का प्रमुख चेहरा होने के कारण जदयू भी इस बार बराबर सीटों की मांग पर अड़ी हुई है। गौरतलब है कि वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू कुल 115 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन उसे महज 43 सीटों पर जीत मिली थी। यह और बात है कि तब चिराग पासवान की लोजपा (आर) एनडीए के साथ नहीं थी। उस चुनाव में उसने जदयू उमीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारे थे। नतीजतन नीतीश कुमार की जदयू तीसरे स्थान पर खिसक गई थी। लोजपा (आर) के अधिकांश उम्मीदवार भाजपा के कार्यकर्ता थे और चुनाव परिणाम के बाद धीरे-धीरे भाजपा में शामिल हो गए। नीतीश और जदयू के नेता मन मसोस कर रह गए। इसलिए इस बार सीटों के बंटवारे में जदयू आर-पार के मूड में है। उसकी चाहत तो दोबारा 115 सीटों की है लेकिन भाजपा के लिए भी यह चुनाव करो या मरो वाला है। चिराग पासवान भी अपने दल के लिए 35 से 40 सीटें मांग रहे हैं। जीतनराम मांझी पहले ही चेतावनीदे रहे हैं कि उनकी पार्टी को अगर 15-20 से कम सीटें मिलेंगे तो वे वह मजबूर होकर 100 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेंगे। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा ने हांलांकि सीटों के विभाजन को लेकर भले ही अपने पत्ते न खोले हों लेकिन इतना तो कह ही दिया है कि अगर इस बार भी उन्हें डुबोने की कोशिश की गई, तो डुबोने वाले भी डूब जाएंगे। मतलबसाफ है कि लोकसभा चुनाव में हुई अपनी पराजय के दंशसे वे अभी भी उबर नहीं पाए हैं।

एनडीए की तरह ही इंडिया गठबंधन भी सीट विभाजन की इसमासमस्या से जूझ रहा है। इंडिया गठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद),कांग्रेस, भाकपा, माकपा, माले, झामुमो के अलावा मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) शामिल है। कांग्रेस 76 उम्मीदवारों के नामों के साथ अपनी सूची तेजस्वी यादव को पहले ही सौंप चुकी है। पटना में देश की आजादी के बाद पहली बार उसने अपनी राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक कर एक तरह से इंडिया गठबंधन पर दबाव भी बना दिया है।वर्ष 2020 में भी कांग्रेस 70 सीटों पर ही यहां चुनाव लड़ी थी लेकिन उसके 19 प्रत्याशियों के सिरपर ही जीत का सेहरा बंध पाया था। इस बार राहुल गांधी को अपनी मतदाता अधिकार यात्रासे काफी उम्मीदें हैं। वीआईपी के मुकेश सहनी भी 60 सीटें मांग रहे हैं। पिछली बार अपेक्षित सीटें नहीं मिलने पर वह अंत समय में गठबंधन से छिटक गए थे। अगर इस बार भी वैसेही हालात बने तो बिहार में इंडिया गठबंधन के लिएयह स्थिति बहुत मुफीद नहीं होगी। इसमें संदेह नहीं कि पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार में वामदलों (भाकपा, माकपा और माले) का प्रदर्शन बेहतरीन रहा। 29 सीटों में से 19 पर जीत कमोवेश इसी ओर इशारा करती है। इस बार वामदल ने 40 सीटों कीमांग कररखी है। जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर सभी 243 सीटों पर लड़ने का दावा कर रहे हैं। वे राजनीतिक दलों के कुछ नेताओं की पोल भी खोल रहे हैं। उनकी अपनी छवि है और इसकालाभ उनकी पार्टी को मिल भी सकता है। हालांकि उन्होंने अभी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। संभवत: उनकी नजर दोनों गठबंधनों की सीटें घोषित होने पर है। जाहिर है जिसे कहीं जगह नहीं मिलेगी, वह जनसुराज की तरफ झुकेगा। बहरहाल, गांव-गली से लेकर चौक-चौराहों पर सियासी चर्चा आम है।

गत दिनों राजद जहानाबाद, नालंदा, मुंगेर, बेगुसराय, मधेपुरा, खगड़िया, सुपौल, समस्तीपुर, वैशाली होते हुए पटना में बिहार अधिकार यात्रा निकाल चुकी है। भाजपा भी चलो जीते हैं रथयात्रा निकाल रही है। इसमें लोगों को प्रधानमंत्री के जीवन पर आधारित फिल्म दिखाई जा रही है। इन यात्राओं का हासिल क्या होगा, यह तो चुनाव नतीजों से ही सुस्पष्ट होगा लेकिन वादों की खेती करने में कोई भी दल किसी से पीछे नहीं दिख रहा है। एकतरफ सत्तारूढ़ दनादन विका सपरियोजनाओं की नींवरख रहा है,वहीं विपक्ष जनता को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराने के दावे कर रहा है। अब जनता को ही तय करना है कि वह किस पर अपने विश्वास की मुहर लगाए और किसे अपनी नजरों से ओझल करे, लेकिन बिहार चुनाव (Bihar Election) तो अभी से दिलचस्प हो गया है। लोगों को मजा तो मिलने ही लगा है। नतीजा चाहेजो भी हो।