लखनऊ। गंगा सिर्फ एक नदी मात्र नहीं है। यह नदी के साथ एक इतिहास और संस्कृति भी है। यह जिस क्षेत्र से गुजरती है उसे हरा भरा कर देती है। यही वजह है कि विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं का यह पालना रही है। इसीलिए इसे जीवनदायिनी कहते हैं। आस्था की वजह से यह मोक्षदायिनी, पतित पावनी और पाप नाशिनी भी मानी जाती है। इन सारी खूबियों के अलावा गंगा का आर्थिक महत्व भी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) गंगा यात्रा से लेकर प्रयागराज महाकुंभ तक कई बार कह चुके हैं कि गंगा सिर्फ आस्था नहीं अर्थव्यवस्था भी है। अब तो अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ भी इसे मानने लगे हैं। प्रयागराज महाकुंभ (Maha Kumbh) में आए और यहां से काशी, अयोध्या, चित्रकूट, विंध्याचल और अन्य जगहों पर जाने वाले श्रद्धालुओं/पर्यटकों की कुल संख्या और उनके द्वारा किए गए अनुमानित खर्च के आंकड़े तथा देश एवं प्रदेश की जीडीपी पर पड़ने वाले असर के आंकड़े अभी और आएंगे। महाकुंभ (Maha Kumbh) के समापन के अवसर पर मुख्यमंत्री योगी ने भी कहा था कि यह आयोजन देश की सांस्कृतिक समृद्धि और आर्थिक प्रगति का प्रतीक बन गया है।
चौथी तिमाही की जीडीपी में दिखेगा महाकुंभ (Maha Kumbh) का असर: केंद्र
हाल ही में केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि महाकुंभ (Maha Kumbh) से होटल, फूड और ट्रांसपोर्ट जैसे उद्योगों को खासा बल मिला। इस आयोजन में आए 50 से 60 करोड़ लोगों ने विभिन्न मदो में जो खर्च किया उसका प्रभावशाली असर चौथी तिमाही की जीडीपी में दिखेगा।
दरअसल, आस्था और अर्थव्यवस्था एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हों भी क्यों नहीं, विष्णुपुराण में जिस समुद्र मंथन का जिक्र है, उसीसे अमृत भी निकला और समृद्धि की देवी महालक्ष्मी भी निकली थीं। अमृत को असुरों से बचाने के लिए जब देवता अमृत कुंभ लेकर भागे, उस समय प्रयागराज, नासिक, उज्जैन और हरिद्वार में अमृत की कुछ बूंदे छलकी। इनसभी जगहों पर कुंभ और महाकुंभ (Maha Kumbh) का आयोजन होता है।
इसके नाते ये आस्था के प्रमुख केंद्र हैं। पहले भी ऐसे आयोजनों से अर्थव्यवस्था को गति मिलती थी, लेकिन महाकुंभ (Maha Kumbh) को लेकर सीएम योगी की पहल और निजी रुचि पर जिस तरह इसकी ब्रांडिंग की गई, वह आस्था और अर्थव्यवस्था के लिए मिसाल बन गई।