हाईकोर्ट की सीढ़ियों पर हिन्दी की पहली ‘पदचाप’ का दिन है 12 अक्टूबर

Chandrashekhar Upadhyay

देहारादून। 12 अक्टूबर, 2004 को   देश के सबसे कम आयु के एडीशनल एडवोकेट जनरल चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (Chandrashekhar Upadhyay )  ने इतिहास रचा था।  उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहली बार  हिन्दी में लिखा पहला सरकारी प्रतिशपथपत्र स्वीकार कराया था।  इसमें उत्तराखण्ड सरकार प्रतिवादी थी। उन्होंने मुख्यमंत्री के ओएसडी (न्यायिक,विधायी एवं  संसदीय- कार्य) रहते हुए वर्ष 2011  में नैनीताल हाईकोर्ट में हिन्दी में कामकाज शुरू कराने की राजाज्ञा जारी करायी थी ।  विधि आयोग में सदस्य (समकक्ष प्रमुख सचिव,विधायी) के दायित्व से जुलाई 2013  में नैनीताल हाईकोर्ट में हिन्दी भाषा में रिट-याचिका स्वीकार कराने का श्रेय भी उन्हें प्राप्त  है ।  संविधान के अनुच्छेद 348  में संशोधन से पहले की स्थिति को उन्होंने  अपने एकल प्रयास से उत्तराखण्ड में बहाल करा दिया ।

अब मामला संसद के पटल पर, 16 वीं लोकसभा में अर्जुनराम मेघवाल व 17 वीं लोकसभा में सत्यदेव पचौरी ने मामला उठाया था।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) इस मुद्दे पर  कई बार  वक्तव्य दे चुके हैं।  उन्होंने कहा है  कि देश की सम्पूर्ण न्याय-व्यवस्था मातृभाषा में संचालित होनी चाहिए।  अपने नौ साल,चार महीने और बारह दिन के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में एकात्म-मानववाद एवं अन्त्योदय के प्रणेता पं.दीनदयाल उपाध्याय के न्यायविद प्रपौत्र को  उन्होंने  नौ मिनट भी मिलने का समय नहीं दिया है।

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चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (Chandrashekhar Upadhyay )  ‘हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी- अभियान के नेतृत्व-पुरुष हैं । उनके केन्द्रीय संवाद समन्वयक मोदी के कार्यालय को लगातार पत्र ,फोन एवं मेल कर रहे हैं।  अभी तक सबके उत्तर अप्राप्त हैं ।

संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन की मांग को लेकर अभियान की 31 प्रान्तों की टीमों ने देश-विदेश से लगभग पौने दो करोड़ से अधिक हस्ताक्षर प्राप्त किये हैं ।  ‘एक परिवार से एक ही हस्ताक्षर’ यह संकल्प था अभियान का,जो बाद में नारा बन गया।

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अभियान की टीमों ने औसतन चार या पांच सदस्यों वाले प्रत्येक-परिवार के प्रत्येक सदस्य से प्रत्यक्ष संवाद किया ।  हस्ताक्षर करनेवालों  की संख्या  अब  छह करोड़ से अधिक हो गयी है ।  ‘हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी- अभियान की ओर से प्रत्येक भारतवंशी से आग्रह किया गया था  कि अभियान की मांग को लेकर  दस परिचितों से समर्थन  मांगें । कहनान होगा कि  इस अभ्यिान को  पूरे देश का  भरपूर प्यार एवं समर्थन मिला।   देश के साठ करोड़ से अधिक लोग हैं अभियान के साथ हैं। यह संख्या अभी और बढ़ेगी ।

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देश की किसी हाईकोर्ट में मातृभाषा में वाद-कार्यवाही शुरू किये जाने को 12 अक्टूबर 2023 को समूचे  19  साल हो गए।  दुर्भाग्य यह है कि देश और विशेषकर उत्तराखण्ड में परिस्थितिनिरपेक्ष व व्यक्तिनिरपेक्ष एक हिन्दी-तपस्वी का सम्पूर्ण तप भुला दिया गया ।  जनरल खंडूड़ी से प्रारम्भ प्रतिशोध का क्रम पुष्कर तक जारी है।  जबकि  प्रख्यात न्यायविद चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (Chandrashekhar Upadhyay ) भारतीय जनता पार्टी के पूर्ववर्ती- दल भारतीय जनसंघ के स्थापना एवं  प्रेरणा-पुरुष पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र हैं।  उनके वेतन अविधिक तरीके से रोके गये। उनकी  नवीन-नियुक्तियों की पत्रावलियों को सालों-साल छिपाकर  रखा गया ।

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देश के संविधान, भारत के महामहिम राष्ट्रपति, उच्चतम- न्यायालय व उच्च-न्यायालय के आदेशों तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की आज्ञाओं की हो रही है उत्तराखण्ड में लगातार अवज्ञा हो रही है।  मामले   अगर न्यायालय चले गये तो कई शीर्ष-नौकरशाहों से लेकर  चपरासी तक जेल की सलाखों के पीछे होंगे ।

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उत्तराखंड के भाजपाई मुख्यमंत्रियों की इस मनमानी व तानाशाही पर पूरी भाजपा ने चुप्पी साध रखी है।   कमजोर तथा अक्षम भाजपाई मुख्यमंत्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मजबूत शीर्ष- नेतृत्व की बात को भी कई बार ठुकरा चुके हैं ।  इसके बावजूद ‘हिन्दी से न्याय’ यह देशव्यापी-अभियान द्रुत-गति से दौड़ रहा है।

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अभियान को ‘हिंसक बनाने’, ‘थकाने’ व ‘बांटने’ की हर साजिश को चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (Chandrashekhar Upadhyay )  ने नाकाम किया है  ।  उत्तराखण्ड के मौजूदा मुख्यमंत्री धामी को कई मुलाकातों में चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय कुल तीन बार सम्पूर्ण दस्तावेज  सौंप चुके हैं ।

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मुख्यमंत्री धामी  (CM Dhami) पिछले दो साल, तीन महीने व आठ दिन से विधि के प्रश्न पर विधि-विशेषज्ञों की बजाय   बाबुओं से सलाह ले रहे हैं , जबकि पत्रावलियों में छह-छह मुख्यमंत्रियों के सकारात्मक आदेश हैं।

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पत्रावलियों में कोई नवीन-आदेश नहीं होना है।  उत्तराखंड के छह मुख्यमंत्रियों के सकारात्मक-आदेशों का मात्र अनुपालन सुनिश्चित होना है ।  प्रखर हिन्दीवीर के अपमान एवं उपेक्षा से सम्पूर्ण हिन्दी व अन्य भारतीय भाषा संसार के अलावा संघ में तीव्र-रोष है ।  कभी भी कोई बड़ा फैसला हो सकता है ।

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