ओडीओपी और विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना से मिला हुनर को सम्मान

ODOP

लखनऊ। हुनर को मिला सम्मान तो बढ़ गए कद्रदान। यह पंक्ति उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर हुबहू चरितार्थ होती है। आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं। हुनर का कद्र बढ़ाने में दो प्रमुख योजनाओं की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही। पहली वर्ष 2018 में पहले उत्तर प्रदेश दिवस पर “नई उड़ान, नई पहचान” हैशटैग से जारी ODOP (एक जिला एक उत्पाद) योजना। इसके दायरे में आने वाले तमाम उत्पादों से जुड़े शिल्पकारों का हुनर निखारने के लिए दूसरी योजना थी, विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना। बाद में योगी सरकार की इन सफलतम योजनाओं को केंद्र सरकार ने न केवल सराहा बल्कि इनको लागू भी किया।

इसके अलावा इसमें बड़ी भूमिका स्थान विशेष से जुड़े खास उत्पादों के जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) की भी रही। उत्तर प्रदेश के जिन तमाम उत्पादों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में जीआई मिला, उनमें से लगभग सभी किसी न जिले की ओडीओपी भी थीं। जिन उत्पादों को सरकार ने ODOP घोषित किया और जिनको इस दौरान जीआई मिली उनमें से अधिकतर हैंडीक्राफ्ट से संबंधित थे। एमएसएमई सेक्टर में इनका ही सर्वाधिक हिस्सा भी है।

इन योजनाओं से एमएसएमई सेक्टर को मिली संजीवनी

इन सबने मिलकर प्रदेश सरकार के एमएसएमई सेक्टर को संजीवनी दे दी। आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं। इससे उत्तर प्रदेश की पहचान मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में बनी। इनके जरिये प्रदेश का निर्यात बढ़कर दो लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया।

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उल्लेखनीय है कि 2014 के बाद उत्तर प्रदेश के जिन 50 से अधिक उत्पादों को जीआई टैग मिला, उनमें से करीब एक दर्जन को छोड़ सभी हैंडीक्राफ्ट सेक्टर के ही हैं। इनमें अकेले बनारस से ब्रोकेड की साड़ियां, गुलाबी मीनाकारी, लकड़ी के समान, मेटल रिपाउज क्राफ्ट, ग्लास बीड्स, वुड कार्विंग, हैंड ब्लॉक प्रिंट आदि हैं।

क्या होती है जीआई टैंगिग और क्या होता है इसका लाभ

जीआई विशेषज्ञ पद्मश्री रजनीकांत के मुताबिक जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। जीआई टैग द्वारा संबंधित उत्पाद या उत्पादों के अनाधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है। यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है। इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है। विशिष्ट उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार-प्रसार करने में आसानी होती है।

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