गोरखपुर। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल (Ramprasad Bismil) का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था। उनके अंदर देश प्रेम का जज्बा एवं जुनून कूट-कूट कर भरा था। माँ भारती की गुलामी को लेकर वह आहत थे। गुलामी की इस जंजीर से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने सशस्त्र क्रांति का सहारा लिया।
इसी क्रम में 9 अगस्त 1925 को काकोरी के पास ट्रेन से सरकारी खजाना लूटने के मामले में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, मन्मथ नाथ गुप्त, अशफाक उल्लाह, राजेंद्र लाहिड़ी, शचीद्रनाथ सान्याल, केशव चक्रवर्ती, मुरारीलाल, मुकुंदीलाल और बनवारी लाल के साथ अभियुक्त बनाये गये। इस आरोप में वह गोरखपुर जेल में बंद थे।
उनको 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई। रामप्रसाद बिस्मिल की फांसी के बाद गोरखपुर क्रांतिकारी आंदोलन का गढ़ बन गया।
फांसी के तीन दिन पूर्व अपनी माँ और मित्र को लिखा था बेहद मर्मस्पर्शी पत्र
फांसी के तीन दिन पूर्व बिस्मिल ने अपनी मां और अनन्य साथी अशफाक उल्ला को बेहद मर्मस्पर्शी पत्र लिखा था।
मां को लिखे पत्र का मजमून कुछ इस तरह था,
“शीघ्र मेरी मृत्यु की खबर तुमको सुनाया जाएगा। मुझे यकीन है कि तुम समझ कर धैर्य रखोगी। तुम्हारा पुत्र माताओं की माता भारत माता के लिए जीवन को बलिदेवी पर भेंट कर गया
इसी तरह अशफाक को लिखा पत्र कुछ यूं था।
“प्रिय सखा…अंतिम प्रणाम मुझे इस बात का संतोष है कि तुमने संसार मे मेरा मुंह उज्जवल कर दिया।—जैसे तुम शरीर से बलशाली थे वैसे ही मानसिक वीर और आत्मबल में भी श्रेष्ठ सिद्ध हुए।
फांसी का फंदा चूमने से पहले बिस्मिल (Ramprasad Bismil) ने कहा,” मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ”
फांसी के फंदे की ओर बढ़ते हुए उनके चेहरे पर न कोई शिकन थी न किंचित मात्र भय। मुंह से बंदे मातरम! भारतमाता की जय! के घोष निकल रहे थे। उन्होंने शान्ति से चलते हुए कहा – ‘मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे, बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे; जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे, तेरा ही जिक्र और तेरी जुस्तजू रहे!
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फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर उन्होंने कहा, ” मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ” (I wish the downfall of British Empire)
उसके पश्चात यह शेर कहा – ‘अब न अह्ले-वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़, एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है!’ फिर ईश्वर के आगे प्रार्थना की और एक मन्त्र पढ़ना शुरू किया। रस्सी खींची गयी। रामप्रसाद जी फाँसी पर लटक गये।”
शव यात्रा में शामिल हुए हजारों लोग
बिस्मिल (Ramprasad Bismil) की फांसी से पूरा गोरखपुर हिल उठा। खद्दर के कफन में लिपटे उनके शव के उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग शामिल हुए। बाबा राघव दास उनकी राख को लेकर बरहज गए।इतिहास ने जिस महत्त्वपूर्ण घटना की अनदेखी की वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर चौरी-चौरा शताब्दी वर्ष के जरिए एक बार फिर लोगों के दिलो-दिमाग पर अमिट रूप से चस्पा हो गई। इस घटना के शहीदों और उनके परिजनों को पहली बार वह सम्मान मिला जिसके वह हकदार थे। उसके बाद से यह सिलसिला लगातार जारी है। अभी मार्च में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वतंत्रता संग्राम के नायक सचिंद्रनाथ सान्याल की गोरखपुर से जुड़ी यादों को जीवंत रखने तथा वर्तमान व भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा पुंज बनाने के लिए सान्याल स्मारक का शिलान्यास किया था। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नाम पर जिला कारागार में स्मारक पहले ही बनाया जा चुका है। अशफाकउल्ला खां की स्मृति में गोरखपुर चिड़ियाघर का नामकरण उनके नाम पर किया गया है।